ज़िम्मेदारी कभी इतनी
बड़ी हो जाती है की
कंधे छोटे पड़ जाते है,
फिर भी उत्तप्त स्वाभिमान
धधकता आत्मविश्वास
निरंतर सुलगता रहता
कुछ अंतर में।
सोचती हूँ
सूरज को भी तो
जलना पड़ता है जीवन स्रोत
बनने के लिए।
घूरती निगाहें मेरे
अपनों की
मेरे अस्तित्व का
आह्वान करती
क्यूंकि रास्ते मुझे ही
सपाट करने हैं
ताकी अनुगामियों का
पथ सुगम हो,
कहाँ ढूंढेंगे
ये आदर्श किताबो में
प्रेरणास्रोत भी बनना है
लक्ष्य दूर है
राह कठिन
फिर भी फासले तय करना है,
अभी मुझे बहुत दूर चलना है।
ज़िम्मेदारी कभी इतनी
बड़ी हो जाती है की
कंधे छोटे पड़ जाते है,
फिर भी उत्तप्त स्वाभिमान
धधकता आत्मविश्वास
निरंतर सुलगता रहता
कुछ अंतर में।
सोचती हूँ
सूरज को भी तो
जलना पड़ता है जीवन स्रोत
बनने के लिए।
घूरती निगाहें मेरे
अपनों की
मेरे अस्तित्व का
आह्वान करती
क्यूंकि रास्ते मुझे ही
सपाट करने हैं
ताकी अनुगामियों का
पथ सुगम हो,
कहाँ ढूंढेंगे
ये आदर्श किताबो में
प्रेरणास्रोत भी बनना है
लक्ष्य दूर है
राह कठिन
फिर भी फासले तय करना है,
अभी मुझे बहुत दूर चलना है।
सविता दास *सवि*
तेज़पुर ,असम
लक्ष्य